Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -19-Jan-2024

शीर्षक - बोझ उतर गया


हम जीवन में बहुत सी चीज या किसी का एहसान जो की बोझ उतर गया की कहावत से समझते हैं या किसी की दया एहसान और कर्ज का उतर जाना ही हम सबको ऐसा लगता है कि बोझ उतर गया। आज की कहानी भी कुछ अजीबोगरीब है क्योंकि हम सभी कहीं ना कहीं आजकल के जमाने में बोझ उतर गया का अर्थ भूल चुके है। क्योंकि आज आधुनिक जमाने में हम सब कहीं ना कहीं हम एहसान को नहीं मान रहे हैं और उसे एहसान को एक स्वार्थ का नाम दे चुके हैं आज कल हम यह कहते हैं मानव एक दूसरे काम आता है बहुत उतर गया कहावत आज के समय में हम सभी भूल चुके हैं। रजनी शहर में घर पर जाकर साफ सफाई और खाना बनाने का काम करती है और आज के जमाने में बहुत से घरों में काम वाली बाई को या साफ सफाई करने वाली को एक इंसानियत या मानवता की नजर से नहीं देखते लोग क्योंकि हां जीवन में हम सभी बोझ उतर गया या एहसान उतर गया भूल चुके हैं। रजनी जहां काम करती है वहां अपने मालिक से बोलता है मालिक मुझे कुछ कर्ज दे दीजिए। मुझे अपने बेटे की स्कूल की फीस भरनी है मलिक कहता है हां सही है मैं आपको रुपए देता हूं कितने रुपए की जरूरत है आपको मलिक 10000 रूपए दे दीजिए। और मालिक रजनी को ₹10000 दे देते हैं साथ ही उससे एक कोरे कागज पर अंगूठे एक निशान ले लेते हैं और कहते हैं यह तो केवल इसलिए कर रहे हैं कि कभी हम बता सके कि हमनें तुमको ₹10000 उधार दिए थे। रजनी पैसे लेकर चली जाती है और अपने बेटे के स्कूल की फीस जमा कर देती है बेटा खुश हो जाता है और रजनी मन ही मन सोचती है। कि अब मैं मलिक का यह बोझ कैसे उतारूंगी। आजकल का माहौल रजनी अच्छी तरह समझती है की लोग कर्ज देने के बाद कर्जदार को कैसे निगाहों से देखते हैं यह आजकल का धनवान लोगों का मन भाव होता है। रजनी फिर अपने काम पर ध्यान रखती है और मालिक एक दिन पूछता है और रजनी तुमने अपने बेटे की फीस जमा कर दी हां मालिक वह तो उसी दिन जमा कर दी थी बहुत बढ़िया और तुम पैसे की चिंता मत करना और जरूरत हो और ले लेना बच्चों को पढ़ना जरूर ऐसा सुनकर रजनी मालिक से कहती मलिक पहले ही आपका बोझ उतर जाए। तब मालिक हंसते हुए रजनी से कहते हैं ऐसा क्यों रहती हो रजनी तुम काम कर रही हो ना हम तुम्हारी पगार में से काट लिया करेंगे वह तो ठीक है मालिक परंतु हमारी आर्थिक स्थिति अभी ठीक ना है कुछ दिनों बाद इनको काम मिल जाएगा तब हमारा काम ठीक हो जाएगा। हां रजनी कोई बात नहीं वापस कर देना पैसा कोई बात नहीं जल्दी नहीं है और कह कर मलिक चले जाते हैं। रजनी अपना काम पूरा कर चली जाती है। और राज की अपने घर जाकर अपने पति से कहती है तुमको जल्दी से मलिक का बोझ उतारना है। और दोनों पति पत्नी ₹10000 कर्ज को उतारने के लिए सोचते हैं। रजनी कामवाली बाई होने के साथ-साथ एक सुंदर और खूबसूरत काया की भी अच्छी थी। और वह हमेशा जमाने की निगाहों को समझती थी परंतु अपनी आर्थिक स्थिति के कारण वह मजबूर थी। और समय बीतता है रजनी के पति को कोई नौकरी नहीं मिलती है और वह और दो-चार जगह से कर्ज ले लेती है परंतु अब है परेशान रहने लगती है तब एक दिन काम कराने वाले मालिक उससे पूछता है। रजनी क्या बात आजकल तुम परेशान बहुत रहती हो तो रजनी कहती है हां मालिक उनको नौकरी नहीं मिली और कर्ज मैंने दो-चार जगह से ले लिया है मेरे ऊपर कर्ज कम से कम 50000 का हो गया है। तब मालिक हंसते हुए कहते हैं तुम रजनी चिंता क्यों करती हो शाम को कम करने आना और₹50000 पर ले जाकर कर्ज निपटा देना रजनी अब समझ चुकी होती है। कि मालिक क्या चाहते हैं। ठीक है मालिक मैं शाम को आऊंगी तब आप रुपए दे देना और कह कर रजनी जाने लगती है। तब मलिक कहते हैं रजनी रात को कुछ मेहमान आ रहे हैं कुछ देर हो जाएगी तुम्हें और तुम घर कहकर आना कि मैं देर से आऊंगी ठीक है मालिक ऐसा कहकर रजनी चली जाती है। और जब वह शाम को मलिक के घर काम करने आती है तो वह देखी है मालिक के घर मालिक और उनके छोटे भाई रमन सेठ भी आए हुए हैं। आज के समाज में रजनी सब कुछ समझती थी परंतु अब रजनी के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था जीवन जीना भी था और जीवन बनाना भी था तब रजनी ने मन ही मन निर्णय किया। आप जीवन जैसे भी है रुपया का बोझ तो उतराना है। मलिक रजनी को देखकर कहती है रजनी कुछ अच्छा खाना बनाकर हम दोनों के लिए ले आओ जी मालिक अभी लाती हूं और कहकर वह किचन की ओर चली जाती है जब खाना बनाकर तैयार हो जाता है तो खाना परोसने के लिए पूछने आती है तब मालिक उसे खाना लगाने के लिए बेडरूम में कह देते हैं। खाना बेडरूम में लेकर जाती है तब रमन सेठ वहां बैठे होते हैं। और रमन सेठ एक बिल्डिंग के ठेकेदार होते हैं जो मालिक की टेंडर पास करते थे। जब रजनी खाना रखती है तब रमन सेठ रजनी का हाथ पकड़ लेते हैं और रजनी पहले से जानती थी। पैसे की कर्ज की मजबूर लाचारी कुछ बोल नहीं पाती है और हम बिस्तर बनने को मजबूर हो जाती है जब वह कमरे से निकलती है तब मालिक ₹50000 रजनी को दे देते है। रजनी आज की आधुनिक समाज को समझ चुकी थी और वह ₹50000 लेकर अपने घर की ओर जा रही होती है और उसके मन में विचार आते हैं सबका बोझ उतर गया। रजनी रहती है सच इतना कड़वा समाज है कि हम ना कह सकते हैं ना सोच सकते हैं बस वह घर पहुंचती है तब रहने की पति पूछते हैं इतना रुपया कहां से लाई हो तो वह कहती है कोई बात नहीं मालिक बहुत दयालु है उन्होंने सारा बोझ उतार दिया। और वह हंसकर बोली अब हमारे कर्ज का बोझ उतर गया है चलो आओ हम खाना खाते हैं रजनी अपनी आंखों में आंसू पीते हुए मन को समझाते हुए की बोझ उतर गया और रसोई में खाना बनाने लगती है। जीवन की सच कुछ ऐसे भी होते हैं हम कुछ कह नहीं पाते हैं बस कुछ समझ नहीं पाते परंतु जीवन को कुछ हमें इस तरह भी जीना पड़ता है।

नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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11 Comments

Shnaya

22-Jan-2024 12:19 AM

Very nice

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नंदिता राय

22-Jan-2024 12:13 AM

Nice

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Khushbu

21-Jan-2024 11:38 PM

Nice

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